नई दिल्ली
संवाददाता : जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया कि दस्तावेजों को सीधे क्रॉस एक्जामिनेशन के चरण में केवल एक गवाह का सामना करने के लिए पेश किया जा सकता है, जो मुकदमे में पक्षकार नहीं है। दूसरे शब्दों में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि गवाह के रूप में गवाही देते समय वादी या प्रतिवादी को क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान किसी नए दस्तावेज़ के साथ सामना नहीं कराया जा सकता। हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को अस्थिर मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस संदर्भ में किसी मुकदमे के पक्षकार और गवाह के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता।मामले में मुद्दा सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश VII, नियम 14(4), आदेश VIII, नियम 1A(4) और आदेश XIII, नियम 1(3) से संबंधित है। हाईकोर्ट ने एक संदर्भ का जवाब देते हुए कहा विरोधाभासी निर्णयों के आधार पर कहा गया: “आदेश VII, नियम 14(4) के तहत आदेश VIII, नियम 1-ए(4) और आदेश XIII, सिविल प्रक्रिया संहिता का नियम 3 न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना किसी गवाह (जो मुकदमे का पक्षकार नहीं है) से क्रॉस एक्जामिनेशन के चरण में उसकी याददाश्त को ताज़ा करने के लिए गवाह का सामना करने के लिए दस्तावेज़ सीधे प्रस्तुत किए जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि मुकदमे के एक पक्ष (वादी/प्रतिवादी) की तुलना एक गवाह से नहीं की जा सकती।