नई दिल्ली
संवाददाता। रखरखाव की कमी के कारण राजधानी की सड़कों पर लगाए गए पेड़ों के मरने पर नाराजगी व्यक्ति करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने लोक निर्माण विभाग (PWD) व वन विभाग से पूछा कि हलफनामा दाखिल करके बताएं कि पेड़ों की देखभाल क्यों नहीं की गई। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं कि इच्छाशक्ति की कमी है। किसी को भी दिल्ली की परवाह नहीं है।
अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में मुख्य सड़कों को हरा-भरा करने के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने वाले सरकारी अधिकारियों पर नाराजगी व्यक्त की। अदालत ने उक्त टिप्पणी तब की जब बेंच को सूचित किया गया कि रिंग रोड के किनारे लगाए गए लगभग 400 पेड़ रखरखाव की कमी और बड़े पैमाने पर कार पार्किंग के कारण मर गए हैं। अदालत ने हलफनामा में यह बताने को कहा कि वृक्षारोपण की स्थिति क्या है और इसकी देखभाल क्यों नहीं की जा रही है। अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फरवरी में सुनवाई की अगली तारीख तक पेड़ों के लिए एक समर्पित निगरानी कक्ष स्थापित किया जाए। अदालत ने यह भी पूछा कि रिंग रोड पर लगाए गए 400 पेड़ों के रखरखाव के लिए अधिकारियों द्वारा कितने निरीक्षण किए गए।
सुनवाई के दौरान राजधानी में वृक्षारोपण से संबंधित मामले में कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए गए अधिवक्ता आदित्य एन प्रसाद ने बेंच को सूचित किया कि अदालत के निर्देशों का पालन करने में घोर लापरवाही हो रही है और इसके कारण लगाए गए पेड़ों को भारी नुकसान हुआ और वे नष्ट हो गए। उन्होंने सूचित किया कि उक्त पेड़ ग्रीन दिल्ली अकाउंट के फंड से खरीदे गए थे और दक्षिण-पश्चिम के पास रिंग रोड पर लगभग 400 पेड़ लगाए गए थे। अदालत ने पाया कि यह राशि अदालत के आदेशों के माध्यम से कई वर्षों में एकत्र किए गए ग्रीन फंड से वृक्षारोपण पर खर्च की जा रही थी। अदालत ने सरकार को मामले पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
बता दें कि हाईकोर्ट ने कई मामलों में लागत के रूप में दोषी वादियों द्वारा जमा किए गए 70 लाख रुपये से अधिक का उपयोग करके अधिकारियों को दिल्ली में कम से कम दस हजार पेड़ लगाने का निर्देश दिया था। इसने कहा था कि अदालत में जमा किए गए ऐसे धन का उपयोग बड़े पैमाने पर सार्वजनिक भलाई के लिए किया जाना चाहिए।