नई दिल्ली
संवाददाता : सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रिसर्फेसिंग मामले पर 2018 के अपने फैसले पर आपत्ति जताई। इस मामले में आदेश दिया गया था कि छह महीने की समय सीमा समाप्त होने पर सभी दीवानी और आपराधिक मामलों में कार्रवाई पर रोक हटा दी जाएगी। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने फैसले में निर्धारित सिद्धांत पर पुनर्विचार के लिए मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया। पीठ ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनिश्चितकालीन रोक के परिणामस्वरूप दीवानी या आपराधिक कार्यवाही अनावश्यक रूप से लंबी हो जाएगी लेकिन साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि देरी हमेशा संबंधित पक्षों के आचरण के कारण नहीं होती है। पीठ ने कहा, अदालतों की कार्यवाही को शीघ्रता से शुरू करने में असमर्थता के कारण भी देरी हो सकती है। वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी को सुनने के बाद पीठ ने मामले को संविधान पीठ के समक्ष रखने का फैसला किया और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरामणी या सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सहायता मांगी। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि मामले को जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा।
2018 के आदेश से बहुत समस्याएं
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश होते हुए द्विवेदी ने कहा कि 2018 का आदेश बहुत सारी समस्याएं पैदा कर रहा है। उन्होंने कहा, सवाल यह है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट की धारा 226 के तहत शक्ति को इस तरह कम किया जा सकता है। पीठ ने उनके तर्क पर सहमति जताते हुए कहा कि ऐसा हमेशा नहीं होता है कि पक्षों की चूक के कारण मामले नहीं उठाए जाते, अदालत कह सकती है कि रोक किसी विशेष तारीख तक या अगले आदेश तक लागू रहेगी। पीठ ने कहा, हमारा विचार है कि 2018 के फैसले में जो सिद्धांत दिया गया है, वह इस आशय का है कि रोक ऑटोमैटिक रूप से निरस्त हो जाएगी, जिसका अर्थ होगा कि रोक होनी चाहिए या नहीं, इस पर न्यायिक विचार किए बिना रोक का स्वत: निरस्त होना।