लखनऊ
संवाददाता : शहरों में बढ़ते अवैध निर्माण के खेल को रोकने के शासन ने सख्त नियम तो बना रखे हैं, पर निचले स्तर पर सभी नियम बेअसर हैं। इसे देखते हुए आवास विभाग अब अवैध निर्माणों पर शिकंजा कसने के लिए फील्ड में तैनात अफसरों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करेगा। इसके लिए अवैध निर्माणों का सर्वे कराया जाएगा। इसके बाद उन अधिकारियों व कर्मचारियों को चिह्नित करने का भी काम किया जाएगा, जो अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं।बता दें कि शहरों में अवैध निर्माण के चलते अनियोजित विकास क्षेत्र व अवैध कॉलोनियों की संख्या बढ़ती जा रही है। हालांकि आवासीय और व्यावसायिक अवैध निर्माणों को रोकने के लिए शासन ने सख्त नियम भी बनाए हैं, लेकिन विकास प्राधिकरणों के स्तर पर इसका सख्ती से पालन नहीं होने के चलते अवैध निर्माणों व कॉलोनियां साल दर साल बढ़ती जा रही है। इसके मद्देनजर अपर मुख्य सचिव आवास नितिन रमेश गोकर्ण ने प्रदेश के सभी विकास प्राधिकरणों में अवैध रूप से बने होटल, व्यावसायिक भवन और बड़े निर्माणों का सर्वे कराने का निर्देश दिया था।हालांकि इसके बाद भी प्राधिकरणों ने चुप्पी साध ली थी। अब कड़ी हिदायत के साथ दोबारा रिमाइंडर भेजे गए हैं। इसमें सभी विकास प्राधिकरणों को सर्वे कराकर अवैध निर्माणों की वास्तविक संख्या की रिपोर्ट मांगी गई है। शासन ने सर्वे के साथ ही उन अधिकारियों और कर्मचारियों के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है, जिनकी फील्ड में तैनाती के दौरान अवैध भवनों व होटलों का निर्माण कराया गया है।
वहीं, सूत्रों का कहना है कि शासन के इस निर्देश के बाद सभी विकास प्राधिकरणों में अवैध निर्माणों का सर्वे का काम तो शुरू कर दिया गया है, लेकिन अधिकारियों व कर्मचारियों के बारे में कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है।प्राधिकरणों के गले की फांस बना शासन का फरमान अवैध निर्माण के मामले में शासन ने भले ही सख्ती दिखाई हो, लेकिन विकास प्राधिकरणों के स्तर पर अवैध निर्माण के लिए सिर्फ छोटे स्तर के कर्मचारियों को ही जिम्मेदार बनाने का खेल चलता है। ऐसे में शासन द्वारा नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों की जानकारी मांगे जाने से विकास प्राधिकरण प्रशासन की जान सांसत में हैं। इसलिए मामले में लीपापोती के प्रयास हो रहे हैं। लेकिन इस बार शासन किसी भी स्तर पर ढील देने के मूड में नहीं है।