एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 60 अवैध दवाईयों, पदार्थों, पौधों,वस्तुओं और प्रवहणों के ज़ब्त किये जाने के संबंध में उल्लेख करती है। एनडीपीएस एक्ट अत्यंत विस्तृत अधिनियम है, इस अधिनियम के अंतर्गत निकाली गई अधिसूचना के अधीन अनेक पदार्थ,औषधि, पौधों को प्रतिबंधित किया गया है। धारा 60 इन प्रतिबंधित प्रदार्थो को सीज करने का अधिकार पुलिस एवं अन्य अधिकारियों को देती है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 60 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है धारा 60 अवैध औषधियों, पदार्थों, पौधों, वस्तुओं और प्रवहणों का अधिहरण किए जाने का दायी होना (1) जब कभी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है तब ऐसी स्वापक औषधि, मनःप्रभावी पदार्थ, नियंत्रित पदार्थ, अफीम पोस्त, कोका के पौधे, कैनेबिस के पौधे, सामग्री, साचित्र और बर्तन जिनकी बाबत या जिनके माध्यम से ऐसा अपराध किया गया है, अधिहरणीय होंगे। (2) कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ [या नियंत्रित पदार्थ] जिसका किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ [या नियंत्रित पदार्थ] के या उसके अतिरिक्त जो उपधारा (1) के अधीन अधिहरणीय है, अवैध रूप से उत्पादन, अंतरराज्य आयात, अंतरराज्य निर्यात, भारत में आयात, परिवहन, विनिर्माण, कब्जा, उपयोग, क्रय विक्रय किया जाता है और ऐसे पात्र, पैकेज और आवेष्टक जिनमें उपधारा (1) के अधीन अधिहरणीय कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ, “[या नियंत्रित पदार्थ ] सामग्री, साधित्र या बर्तन पाया जाता है और ऐसे पात्र या पैकेज की कोई अन्य अंतर्वस्तु, यदि कोई हो, उसी प्रकार अधिहरणीय होगी।3) किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ, ‘[या नियंत्रित पदार्थ] या उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अधिहरणीय किसी वस्तु के वहन में उपयोग में लाया गया कोई जीवजंतु या प्रवहण अधिहरणीय होगा जब तक कि जीवजंतु या प्रवहण का स्वामी यह साबित नहीं कर देता है कि उसका इस प्रकार उपयोग स्वयं स्वामी, उसके अभिकर्ता, यदि कोई हैं, और उस जीवजंतु या प्रवहण के भारसाधक व्यक्ति के ज्ञान या मौनानुकूलता के बिना किया गया था और उनमें से प्रत्येक ने ऐसे उपयोग के विरुद्ध सभी समुचित पूर्वावधानियां बरती थी।इस धारा में समपहरण के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि अधिनियम के तहत अपराध होने की दशा में हर मामले में समपहरण का आदेश दिया जाए। अधिनियम की धारा 80 (1) का प्रावधान यह दर्शाता है कि जब अधिनियम के अध्याय 4 के तहत दण्डनीय कोई अपराध कारित किया जाता है तो स्वापक औषधि समाहरण के लिए दायी हो जाएगी। एक मामले में विचारण न्यायालय ने हालांकि निम्नानुसार अभिनिर्धारण किया था- अपील की अवधि के पश्चात् जब्त की गई अफीम नारकोटिक्स विभाग को निराकरण हेतु भेजी जाए।संत गंगादास बनाम स्टेट ऑफ एम.पी, 1988 (2) म.प्र.वी. नो. 109 म.प्र के मामले में हाई कोर्ट का अभिमत रहा कि सत्र न्यायालय के द्वारा विवेक का अनुचित प्रयोग किया गया था और यह अधिनियम की धारा 60 (1) की पुष्टि में नहीं था। इसे स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ नियम, 1985 के नियम 13 के उपनियम (1) एवं (2) की पुष्टि में होना भी नहीं माना गया। परिणामतः हाई कोर्ट ने इस बिन्दु पर सत्र न्यायालय के आदेश को परिवर्तित कर दिया। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि अधिनियम की धारा 60 (1) के अधीन राज्य के पक्ष में 121 ग्राम अफीम का पैकेट समपहृत किया जाता है।एनडीपीएस रूल्स, 1985 के नियम 13 (2) के अधीन यह आदेशित किया गया कि उपरोक्त कथित अफीम को डिस्ट्रिक्ट एक्साइज ऑफिसर जिला गुना को सुपुर्द किया जाए। समपहृत की गई अफीम को नियम 13 के उपनियम (2) के अधीन इस रीति में निराकृत किया जाएगा जो कि एक्साइज कमिश्नर अथवा कोई अन्य अधिकारी इस संबंध में समय-समय पर निर्देशित करे। मोहम्मद अलीमुद्दीन बनाम स्टेट ऑफ मणिपुर, 2001 (4) क्राइम्स 135 गुवाहाटी के मामले में अभियुक्त अवयस्क था 106 किलोग्राम गाँजे का आधिपत्य उस वाहन में पाया गया था। जो कि आवेदक, अभियुक्त व एक अन्य अभियुक्त के आधिपत्य में था आवेदक अभियुक्त के संबंध में जमानत की माँग की गई थी। अधिनियम की धारा 37 (1) (ii) आकर्षित होना नहीं पाई गई। जमानत स्वीकार कर ली गई।कुन्दनलाल बनाम स्टेट ऑफ एम.पी, 1988 (1) म.प्र.बी. नो. 192. म.प्र के मामले में 112.5 किलोग्राम वजन की अफीन कार में पाई जाने का आरोप था। पुलिस के द्वारा अफीम व कार दोनों को जब्त कर लिया गया था। याचिकाकार के द्वारा वाहन की अंतरिम अभिरक्षा के लिए आवेदन दिया गया था। याचिकाकार ने यह कहा था कि उसे अपराध कारित किए जाने के संबंध में जानकारी नहीं थी। मजिस्ट्रेट महोदय ने इस आधार पर आवेदन निरस्त कर दिया था कि अपराध गंभीर प्रकृति का है। मजिस्ट्रेट के निरस्ती के आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण प्रस्तुत की गई थी। इसे भी निरस्त कर दिया गया था। परिणामतः हाई कोर्ट के समक्ष कार्यवाही की गई थी। हाई कोर्ट ने व्यक्त किया कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश महोदय ने पुनरीक्षण याचिका को निराकृत करते समय न्याय दृष्टांत् बलविन्दरसिंह, 1986 (2) म.प्र.वी. नो. 170 को यह कहते हुए सुभिन्न किया था कि यह अफीम अधिनियम से संबंधित था व स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 60(3) के सुसंगत प्रावधान और अधिक कठोर हैं। हाईकोर्ट ने व्यक्त किया कि न्याय दृष्टांत् स्टेट ऑफ एम. पी. बनाम आजाद भारत फायनेशिसल कंपनी, 1967 जे. एल. जे. 153 जो कि अफीम अधिनियम से संबंधित है उसको भी उपयोगी तौर पर परिशीलित किया जा सकता है। जब्त संपत्ति के व्ययन के संबंध में न्यायालय को वैवैविक अधिकारिता प्राप्त होती है। इस संबंध में विवेक का प्रयोग न्यायिक तौर पर किया जाना चाहिए। संपत्ति समपहरण के लिए दायी हो सकती है मात्र इस आधार पर न्यायालय की विवेकपूर्ण अधिकारिता परे नहीं की जा सकती है। हाई कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत प्रस्तुत की गई याचिका को स्वीकार किया और सुपुर्दगीनामे के निष्पादन किए जाने पर वाहन की अंतरिम अभिरक्षा दिए जाने का अभिमत दिया। कुन्दनलाल बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 1988 (1) म.प्र.वी. नो. 192. म.प्र के मामले में अधिनियम की धारा 60 (3) के प्रावधान स्वामी पर यह प्रमाण भार अधिरोपित करते हैं कि वाहन समपहरण के लिए दायी नहीं है। परंतु यह स्पष्ट किया गया कि न्यायालय को इस तथ्य के बावजूद भी कि संपत्ति समपहरण के लिए दायी हो सकती है अंतरिम अभिरक्षा में वाहन सुपुर्द करने का अधिकार होगा। कुन्दनलाल बनाम स्टेट ऑफ एम.पी, 1988 (1) म.प्र.वी. नो. 192. म.प्र के प्रकरण में प्रावधान का निर्वाचन किया गया हाई कोर्ट ने व्यक्त किया कि निःसन्देह तौर पर अधिनियम की धारा 60 (3) के प्रावधान स्वामी पर यह प्रमाणित करने का भार डालते हैं कि वाहन समपहरण के लिए दायी नहीं है परंतु न्यायालय को ऐसी संपत्ति के संबंध में भी आदेश पारित करने का विवेक प्राप्त होगा जो कि समपहरण के लिए दायी हो सकती है। हाईकोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि यह इंगित किया जा सकता है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 जो कि लंबित विचारण के दौरान अंतरिम अभिरक्षा के संबंध में प्रावधान दर्शाती है यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 452 के प्रावधान से जो कि विचारण के निष्कर्ष पर संपत्ति के व्ययन के संबंध में है, भिन्न है। मामले के तथ्यों पर विचार किया गया। परिस्थितियों को देखा गया उच्च न्यायालय ने यह राय व्यक्त की कि मामला किसी शीघ्र दिनांक को निराकृत होने वाला प्रतीत नहीं होता है। परिणामतः अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए उब न्यायालय ने मामले में वाहन की अंतरिम अभिरक्षा दिए जाने के संबंध में आदेश पारित किया। खलील अहमद बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2000 (1) म.प्र.वी. नो. 217.म.प्र के मामले में अधिनियम के तहत अपराध था अपराध कारित करने में वाहन का प्रयोग होना पाया गया था। वाहन की अभिरक्षा चाही गई थी। वाहन को अभिरक्षा में देने से इस आधार पर इंकार नहीं किया जा सकता कि वाहन समपहरण के लिए दायी हो सकता है। इस तरह की स्थिति में भी वाहन को सुपुर्दनामा जमानत पर निर्मुक्त किया जा सकता है। राजकौर बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2005 (4) एम.पी.एच.टी. 400 म.प्र के मामले में वाहन के अधिहरण करने की प्रक्रिया वाहन के अधिहरण करने की प्रक्रिया करने की स्थिति स्पष्ट की गई। वाहन के रजिस्टर्ड स्वामी को सूचित किया जाना आवश्यक माना गया। सुनवाई का अवसर दिया बिना अधिहरण की कार्यवाही अमान्य की गई। कैलाश बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2006 क्रिलॉज 1726 राजस्थान के मामले में प्रश्नगत कार के समपहरण के आदेश की विधिमान्यता पर विचार किया गया। समपहरण के आदेश करने के पूर्व कोई साक्ष्य नहीं थी। वाहन के स्वामी को सूचना नहीं दी गई थी और न ही उसे सुनवाई का कोई अवसर दिया गया था। यह भी प्रतीत होना पाया गया कि अधिनियम की धारा 60 व 63 में प्रावधानित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। इस प्रक्रिया का पालन किए बिना प्रश्नगत मारुति कार के समपहरण का आदेश दिया गया था। ऐसे आदेश को विधिक नहीं माना गया। परिणामतः कार समपहरण के आदेश को अपास्त कर दिया गया।