1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता अधिकारों के संरचनात्मक परिवर्तन को सूचित करता है। इसके पूर्व में, उपभोक्ता अपनी शिकायतों की निवृत्ति के लिए विशेष कानूनों की कमी थी, और उपभोक्ता को निवृत्ति प्राप्त करने में अधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। यह अधिनियम एक ऐसा मील का पत्थर था जो उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कानूनी संरचना प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाता है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस के उद्देश्य: 1. जागरूकता बढ़ाना: राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस का एक प्रमुख उद्देश्य है उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करना। इससे उपभोक्ताओं को सूचित निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जब वह वस्तुओं और सेवाओं को खरीदते हैं। 2. निष्कलंक और पारदर्शी व्यापार प्रथाओं को प्रोत्साहित करना: यह दिन निष्कलंक और पारदर्शी व्यापार प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। व्यापार करने वालों को उनकी नैतिक जिम्मेदारियों के बारे में बताना और उपभोक्ताओं को अनैतिक अभ्यासों की पहचान करने और रिपोर्ट करने के लिए शिक्षित किया जाता है।
3. उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को प्रमोट करना: राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस एक मजबूत और सुचारु अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने में एक अभियान की तरह मनाया जाता है। इससे उपभोक्ता और व्यापार के बीच विश्वास और निष्ठा पर आधारित एक साजगर्भित संबंध को बढ़ावा मिलता है। मुख्य उपभोक्ता अधिकार: राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस पर, उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार प्रदान किए गए मुख्य अधिकार: 1. सूचना का अधिकार (धारा 6): उपभोक्ताओं को उनकी खरीददारी करने के लिए वस्तुओं या सेवाओं के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है, जिसमें उनकी गुणवत्ता, मात्रा, प्रभाव, पवित्रता, मानक और मूल्य के बारे में विवरण शामिल है। 2. चयन का अधिकार (धारा 7): उपभोक्ताओं को विभिन्न विकल्पों से उत्पादों या सेवाओं का चयन करने का अधिकार है। उन्हें किसी विशेष उत्पाद या सेवा को स्वीकृत करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। 3. सुरक्षा का अधिकार (धारा 8): उपभोक्ताओं को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षित रखने का अधिकार है जो जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक हो सकते हैं। उत्पादों और सेवाओं को सुरक्षा मानकों का पालन करना आवश्यक है, और निर्माताओं को संबंधित खतरों के बारे में स्पष्ट चेतावनी देनी चाहिए। 4. सुनने का अधिकार (धारा 9): उपभोक्ताओं को अपने शिकायतों और चिंताओं को व्यक्त करने और उन्हें सुनने का अधिकार है। उन्हें सामान या सेवाओं के बारे में अपनी शिकायतें और चिंताएँ प्रस्तुत करने और एक न्यायपूर्ण और त्वरित निदान प्राप्त करने का अधिकार है। 5. सुधार की मांग का अधिकार (धारा 14): सामान या सेवा में किसी कमी या अभाव की स्थिति में, उपभोक्ताओं को सुधार की मांग करने का अधिकार है। इसमें मुआवजा, पुनर्स्थापन या मरम्मत शामिल हो सकता है, जो शिकायत की प्रकृति के अनुसार है। 6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार (धारा 10): उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करने का अधिकार है। इस अधिनियम के माध्यम से उपभोक्ता के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया है, उपभोक्ताओं को न्यायपूर्ण और ईमानदार व्यापार अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किए गए अन्यायपूर्ण या सीमित व्यापार अभ्यासों से सुरक्षित रखने का अधिकार है। धोखाधड़ी, असत्य दावे और भ्रांतिमय प्रस्तुतियों को अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। 6. उपभोक्ता न्यायालय का अधिकार (धारा 34): उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 34 उपभोक्ता न्यायालय के संरचना और कार्य के बारे में है। इसका उद्देश्य व्यापारिक विवादों को त्वरित और दोषमुक्त तरीके से सुलझाने के लिए एक तेज़ प्रक्रिया प्रदान करना है। धारा 34 के अनुसार, एक राष्ट्रीय स्तर का उपभोक्ता न्यायालय स्थापित किया जा सकता है जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के बीच विवादों का त्वरित समाधान करना है। यह न्यायालय जिला स्तर, राज्य स्तर, और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया जा सकता है और इसकी क्षमता राष्ट्रीय स्तर पर विवादों को सुलझाने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने में होती है। ये अधिकार साझा सामरिक वातावरण सुनिश्चित करने, उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के उपलब्ध होने, और एक न्यायपूर्ण और पारदर्शी व्यापार माहौल को बढ़ावा देने के लिए एक समृद्धि और योग्य फ्रेमवर्क प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के उल्लंघनों का सामर्थ्यिक समाधान, 2019 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार कानूनी संरचनाओं के माध्यम से किया जा सकता है। उपभोक्ता मामलों की चरण और प्रक्रिया: उपभोक्ता मामलों की शिकायत से लेकर सुनवाई तक के लिए कई चरण और अलग अलग प्रक्रिया है जो की मामले पर निर्भर करता है कि उक्त मामले में शामिल वस्तु कि कीमत कितनी है, ऐसे में उभोक्ता मामलों के लिए आयोग की तीन इकाई शामिल है- जिला उपभोक्ता आयोग, राज्य उपभोक्ता आयोग और राष्ट्रिय उपभोक्ता आयोग। तथा शिकायत को दर्ज कराने से लेकर सुनवाई एवं फैसले तक के लिए सुनिश्चित प्रक्रिया बनाई गई है: 1. शिकायत करना: उपभोक्ता मामला शुरू होता है जब कोई उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा के खिलाफ शिकायत करता है। शिकायत को दर्ज करने का समय सीमा निर्धारित होती है, सामान्यत: क्रिया के दिनांक से दो वर्ष। 2. उपभोक्ता फोरम: शिकायतें मूल्य के आधार पर उपयुक्त उपभोक्ता फोरम में दर्ज की जाती हैं 20 लाख तक के दावों के लिए जिला उपभोक्ता विवाद सुलझाओ फोरम (DCDRF) में शिकायत दर्ज कराई जाती है। 20 लाख से 1 करोड़ तक के दावों के लिए राज्य उपभोक्ता विवाद सुलझाओ आयोग (SCDRC) में शिकायत दर्ज कराई जाती है। 1 करोड़ से अधिक दावों के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद सुलझाओ आयोग (NCDRC) में शिकायत दर्ज कराई जाती है। 3. केस स्वीकृति: फोरम शिकायत को स्वीकृत करने के लिए देखता है, सुनिश्चित करता है कि यह उसकी प्राधिकृति के अंदर आती है और कानूनी आवश्यकताओं का पालन करती है।यदि स्वीकृति होती है, तो फोरम नोटिस जारी करके विरोधी पक्ष को प्रतिसाद देने के लिए मार्गदर्शन करता है। 4. दोनों पक्षों के तर्क एवं दलीलें: अपने अपने पक्षों को रखते हुये दोनों पक्ष अपने दलीलों एवं तर्कों को आयोग के समक्ष रखते हैं, फोरम तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होने पर एक विशेषज्ञ को नियुक्त कर सकता है। 5. निर्णय:फोरम उपभोक्ता मामले की साक्षात्कार और कानूनी सिद्धांतों के आधार पर निर्णय देता है, निर्णय में मुआवजा, वस्तु की पुनःप्राप्ति, या दी गई राशि की वापसी शामिल हो सकती है, आपत्ति के प्रकार के आधार पर। 6. अपील:असंतुष्ट पक्ष निर्णय के खिलाफ अपील कर सकते हैं। DCDRF से SCDRC और SCDRC से NCDRC तक की अपीलें हो सकती हैं। 7. आदेश का पालन: एक बार जब निर्णय निर्धारित हो जाता है, सफल पक्ष आदेश का पालन कर सकता है, विरोधी पक्ष द्वारा आदेश का पालन नहीं होने पर और निष्पादन के लिए विधिक कदम उठा सकता है।